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गीतावली पद 101 से 110 तक / पृष्ठ 8

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राग बिलावल
जानकी-बर सुन्दर, माई |
इन्द्रनील-मनि-स्याम सुभग, अँग-अंग मनोजनि बहु छबि छाई ||

अरुन चरन, अंगुली मनोहर, नख दुतिवन्त, कछुक अरुनाई |
कञ्जदलनिपर मनहु भौम दस बैठे अचल सुसदसि बनाई ||

पीन जानु, उर चारु, जटित मनि नूपुर पद कल मुखर सोहाई |
पीत पराग भरे अलिगन जनु जुगल जलज लखि रहे लोभाई ||

किङ्किनि कनक कञ्ज अवली मृदु मरकत सिखर मध्य जनु जाई|
गई न उपर, सभीत नमित मुख, बिकसि चहूँ दिसि रही लोनाई ||

नाभि गँभीर, उदर रेखा बर, उर भृगु-चरन-चिन्ह सुखदाई |
भुज प्रलम्ब भूषन अनेक जुत, बसन पीत सोभा अधिकाई ||

जग्योपबीत बिचित्र हेममय, मुक्तामाल उरसि मोहि भाई |
कन्द-तड़ित बिच जनु सुरपति धनु रुचिर बलाक पाँति चलि आई||

कम्बु कण्ठ चिबुकाधर सुन्दर, क्यों कहौं दसनन की रुचिराई |
पदुमकोस महँ बसे बज्र मनो निज सँग तड़ित-अरुन-रुचि लाई ||

नासिक चारु, ललित लोचन, भ्रकुटिल, कचनि अनुपम छबि पाई |
रहे घेरि राजीव उभय मनो चञ्चरीक कछु हृदय डेराई ||

भाल तिलक, कञ्चन किरीट सिर, कुण्डल लोल कपोलनि झाँई |
निरखहिं नारि-निकर बिदेहपुर निमि नृपकी मरजाद मिटाई ||

सारद-सेस-सम्भु निसि-बासर चिन्तत रुप, न हृदय समाई |
तुलसिदास सठ क्यों करि बरनै यह छबि निगम नेति कह गाई ||