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राग	टोड़ी
	राजा रङ्गभूमि आज बैठे जाइ जाइकै |
	आपने आपने थल,  आपने आपने साज,
	आपनी आपनी बर बानिक बनाइकै ||
	कौसिक सहित राम-लषन ललित नाम,
	लरिका ललाम लोने पठए बुलाइकै |
	दरसलालसा-बस लोग चले भाय भले,
	बिकसित-मुख निकसत धाइ धाइ कै ||
	सानुज सानन्द हिये आगे ह्वै जनक लिये,
	रचना रुचिर सब सादर देखाइकै |
	दिये दिब्य आसन सुपास सावकास अति,
	आछे आछे बीछे बीछे बिछौना बिछाइकै ||
	भूपतिकिसोर दुहुँ ओर, बीच मुनिराउ
	देखिबेको दाउँ, देखौ देखिबो बिहाइकै |
	उदय-सैल सोहैं सुन्दर कुँवर, जोहैं,
	मानौ भानु भोर भूरि किरनि छिपाइकै ||
	कौतुक कोलाहल निसान-गान पुर, नभ
	बरषत सुमन बिमान रहे छाइकै |
	हित-अनहित, रत-बिरत बिलोकि बाल,
	प्रेम-मोद-मगन  जनम-फल  पाइकै ||
	राजाकी रजाइ पाइ सचिव-सहेली धाइ, 
	सतानन्द ल्याए सिय सिबिका चढ़ाइकै |
	रुप-दीपिका निहारि मृग-मृगी नर-नारि,
	बिथके बिलोचन-निमेषै    बिसराइकै ||
	हानि, लाहु, अनख, उछाहु, बाहुबल कहि 
	बन्दि बोले बिरद अकस उपजाइकै |
	दीप दीपके महीप आए सुनि पैज पन,
	कीजै पुरुषारथको अवसर भौ आइकै ||
	आनाकानी, कण्ठ-हँसी मुँहा-चाही होन लगी,
	देखि दसा कहत बिदेह बिलखाइकै |