091
.रागमलार
जब दोउ दसरथ-कुँवर बिलोके |
जनक नगर नर-नारि मुदित मन निरखि नयन पल रोके ||
बय किसोर, घन-तड़ित-बरन तनु नखसिख अंग लोभारे |
दै चित, कै हित, लै सब छबि-बित बिधि निज हाथ सँवारे ||
सङ्कट नृपहि, सोच अति सीतहि, भूप सकुचि सिर नाए |
उठे राम रघुकुल-कुल-केहरि, गुर-अनुसासन पाए ||
कौतुक ही कोदण्ड खण्डि प्रभु, जय अरु जानकि पाई |
तुलसिदास कीरति रघुपतिकी मुनिन्ह तिहूँ पुर गाई ||