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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 1

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रागसोरठ

  मोपै तो न कछू ह्वै आई |
  ओर निबाहि भली बिधि भायप चल्यो लखन-सो भाई ||

  पुर, पितु-मातु, सकल सुख परिहरि जेहि बन-बिपति बँटाई |
  ता सँग हौं सुरलोक सोक तजि सक्यो न प्रान पठाई ||

  जानत हौं या उर कठोरतें कुलिस कठिनता पाई |
  सुमिरि सनेह सुमित्रा-सुतको दरकि दरार न जाई ||

  तात-मरन, तिय-हरन, गीध-बध, भुज दाहिनी गँवाई |
  तुलसी मैं सब भाँति आपने कुलहि कालिमा लाई ||