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गीतावली / तुलसीदास / पृष्ठ 11
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2(वन के लिये बिदाई)
स्नहु राम मेरे प्रानपियारे!
बारौं सत्य बचन श्रुति-सम्मत, जाते हौं बिछुरत चरन तिहारे।1।
बिनु प्रयास सब साधनको फल प्रभु पायो, सो तो नाहिं सँभारे।
हरि तजि धरमसील भयो चाहत ,नृपति नारिबस सरबस हारे।2।
रूचिर काँचमनि देखि मूढ ज्यों करतलते चिंता मनि डारे।
मुनि लेाचन चकोर ससि राघव , सिव जीवनधन ,सोउ न बिचारे।3।
जद्यपि नाथ तात! मायाबस सुखनिधान सुत तुम्हहिं बिसारे।
तदपि हमहि त्यागहु जनि रघुपति ,दीवबंधु ,दयालु, मेरे बारे।4।
अतिसय प्रीति बिनीत बचन सुनि, प्रभु कोमल चित चलत न पारे।
तुलसिदास जौ रहौं मातु-हित, को सुर बिप्र भूमि भय टारे?।5।