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गीतों का उपहार / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
भेज रहे हैं आज तुम्हें हम गीतों का उपहार।
इन गीतों में बसा हमारे दिल का सारा प्यार।
पहला गीत हुआ था जब हम
पहली बार मिले थे।
जाने कितने फूल हमारे
मन में तभी खिले थे।
उन फूलों से अब तक महके सुधियों का संसार।
भेज रहे हैं आज तुम्हें हम गीतों का उपहार।
गीत दूसरा जन्मा था जब
तुम हमको भाये थे।
हमें देखकर तुम भी थोड़ा-
थोड़ा मुस्काये थे।
और तुम्हारे नयनों ने थे किये ह्रदय पर वार।
भेज रहे हैं आज तुम्हें हम गीतों का उपहार।
मिलना-जुलना शुरू हुआ फिर
घटी हमारी दूरी।
घंटों-घंटों बातें की पर
कभी न हो सकीं पूरी।
जो बातें की वही बन गयीं गीतों का आधार।
भेज रहे हैं आज तुम्हें हम गीतों का उपहार।