भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-बीज / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने ही
गीत-बीज
हिरदय में अनबोये पड़े रहे

कुछ पुरखे कवियों की थे थाती
दिवस-मास-बर्षों की
जोगलिखी थी पाती

कितने ही
थे अनुभव
जो हमने शब्दों में नहीं कहे

इक उजास-बानी थी सूरज की
अनजानी यात्राएँ थीं अनेक
अचरज की

अनगाये रह गये
कितने ही
देह-ताप जो हमने सहे

नहीं हुए सपने संवाद कई
आँखों-ही-आँखों में
धूप-छाँव बिला गई

बहता है
काल-सिंधु
उसमें ही सारे एहसास बहे