भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत अब बदलाव के हम साथ मिलकर गाएँगे / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत अब बदलाव के हम साथ मिलकर गाएँगे ।
चल पड़े हम लोग तो कुछ और भी आ जाएँगे ।।

ज़ुल्म की चूलें हिलेंगी झूठ होंगे बेनक़ाब
चीख़ को अन्याय की देहलीज़ तक पहुचाएँगे ।

ज़ख़्म खाए हम सभी है दर्द सबका एक-सा
ढूँढ़कर अपने ग़मों की हम दवा अब लाएँगे ।

रोज़मर्रा के सवालों को उठाया जाएगा
ख़ौफ़ के रिश्ते न अब हर्गिज़ निभाए जाएँगे ।

साज़िशें जो भी हुई हैं आमजन के साथ में
अब सुगम गिन-गिन के सब बदले चुकाए जाएँगे ।