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गीत की झंकार / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
वह अमर क्षण, वह अमर क्षण
गंध पारावार
सब दिशाओं में खिला था
पुष्प का संसार
मंदिर सुरभित था समीकरण॥
वह अमर क्षण, वह अमर क्षण
हर्ष पुलकित गात
खिल गया उर सरोवर में
मृदुल जलजात
नयन में कुछ अश्रु के कण॥
वह अमर क्षण, वह अमर क्षण
रस बरसती धार
गगन में मिल गुंजती थी
गीत की झंकार
रात और दिन का मिलन॥
वह अमर क्षण, वह अमर क्षण
दो ह्रदय थे एक
एक होने की प्रतिज्ञा
एक ही थी टेक
मगन था यह मन मगन॥