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गीत कोहिनूर था / उदभ्रान्त
Kavita Kosh से
यह पथ
जो रंग का प्रतीक था
यह पथ अब
धूल हो गया है
जीवन का
ऐसा दस्तूर था
हर उजला गीत
कोहिनूर था
वक़्त
और कुछ नहीं
गुलाब था
कठिन प्रश्न का
सरल जवाब था
लेकिन यह
अनायास
क्या हुआ?
पल में
वह छंद
हो गया धुआँ!
यह रथ
जो छंद का प्रतीक था
पग-पग पर
भूल हो गया
पानी में
रंग सभी धुल गये
छंदों के
जोड़-जोड़
खुल गए
ऐसा बिखराव
आ गया क्षण में
फूल
एक भी
नहीं बचा मन में
खुशबू से भीगी
जो सांस थी
भीतर वह
एक उपन्यास थी
इति-अथ
जो गंध का प्रतीक था
कुम्हलाया
फूल हो गया
यह पथ
अब धूल हो गया है