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गीत तुमको भा रहे हैं / बालस्वरूप राही

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मान पाया यदि नहीं कवि विश्व मुझको तो हुआ क्या
यह मुझे विश्वास, मेरे गीत तुमको भा रहे हैं

एक तृण भी पा सके नव प्राण तो सावन सफल है
एक मुख भी कर सके श्रृंगार तो दर्पण सफल है
व्यर्थ वह जलकण नहीं जो एक की भी प्यास पी ले
एक मन भी कर सके रस-मग्न, वह गायन सफल है।

एक भी सपना नहा कर हो गया अकलंक, पवन,
मैं समझ लूंगा सफल हैं, अश्रु जो मेरे बहे हैं।

व्यर्थ वह दीपक नहीं जो शून्य पथ पर चल रहा है
एक भी पंथी अगर उसके सहारे चल रहा है
सोच कुछ मुझको नहीं यदि गीतिमय अस्तित्व मेरा
हर किसी अपने पराये की नज़र में खल रहा है।

गा रहा हूँ मैं कि मेरी आत्मा सुख पा रही है
गीत से बहला रहा हूँ, दर्द जो मैंने सहे हैं।

स्नेह-भीगा स्वर प्रशंसा के वचन से कम नहीं है
प्यार की धरती मुझे यश के गगन से कम नहीं है
गीत सुन मेरा तुम्हारी आंख से आंसू गिरा जो
वह किसी अनमोल मोती या रतन से कम नहीं है

है बहुत अहसान मुझ पर गीत का व्यवधान जितने
थे तुम्हारे और मेरे बीच, सब इससे ढहे हैं।

मान पाया यदि नहीं कवि विश्व मुझको तो हुआ क्या
यह मुझे विश्वास, मेरे गीत तुमको भा रहे हैं