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गीत नहीं लिखता हूँ साथी / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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गीत नहीं लिखता हूँ साथी! मैं संसार लिखा करता हूँ!
पतझड़ में जलता हूँ लेकिन निर्झर-धार लिखा करता हूँ!

 गीत छोड़ कर मेरा कोई जीने का आधार नहीं है
 एक यही है सत्य, रूप भी तो मिलता साकार नहीं है।
 ये मंज़िल के गीत पाँव को आस दे रहे
 गीत प्राण के मीत बने विश्वास दे रहे!

साँस नहीं ठंडी हो जाये मैं अंगार लिखा करता हूँ।
गीत नहीं लिखता हूँ साथी! मैं संसार लिखा करता हूँ!

 इन गीतों का मोल लगा मत, बिकनेवाला रक्त नहीं यह
 लिखता तो हूँ गीत, गीत क्या? कर सकता हूँ व्यक्त नहीं यह।
 एक लहर पर जिये जा रहा, एक तान पर उमर ढ़ो रहा
 उधर पड़ी है रेत, देख प्लावन गीतों का इधर हो रहा!

गीत नहीं लिखता हूँ केवल मैं पतवार लिखा करता हूँ!
गीत नहीं लिखता हूँ साथी! मैं संसार लिखा करता हूँ!

 एक गीत है जिसके आगे दुनिया फीकी
 एक विश्व से अधिक कीमती कविता कवि की।
 पतझड़ के पत्तों से मैने गीत चुराये-
 अपनी पलकों से वीणा के तार चढाये।

छन्द-छन्द को बाँध-बाँधकर मैं झंकार लिखा करता हूँ।
गीत नहीं लिखता हूँ साथी! मैं संसार लिखा करता हूँ!