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गीत प्यार के / ब्रजनंदन वर्मा
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घर न रहे अन्हरिआ केकरो,
कलह मेटाऊ जीत-हार के।
आब∙ दीआ जराऊ घर में,
मिल-जुल गाऊ गीत प्यार के।।
नगर-डगर पर जगमग होए,
केकरो धीआ-पुता न रोए।
घर-घर बँटे मिठाई सगरो,
खुसी रहे मन बनिहार के।।
सूरज घर में हम बोलउली,
अप्पन देहिआ जार-जार के।
देखते हमरा भागे लागल,
लत्ते-फत्ते ले अन्हार के।।
माटी की दीआ बनाबे में,
की बीटल होई कुम्हार के।
मन में रहे न द्वेस-भावना,
तिमिर मिटाऊ दोआर-दोआर के।।
दीवाली हर साल कहइअ,
घरबइआ के ऊ पुकार के।
भाईचारा बनल रहे आ,
बने मोटी स∙ एक हार के।।
कोनो इहाँ न भूखले सूते,
बात करे न∙ कोई बिगार के।
मिल-जुल राहू एक्के घर में,
बरइत दीआ कहे कतार के।।