गीत मेरे गुनगुनाओ तुम, सुनूँ मैं / बलबीर सिंह 'रंग'
गीत मेरे गुनगुनाओ तुम, सुनूँ मैं।
यह न समझो लिख रहा मैं गीत अपने,
विकल जग की वेदना बहला रहा हूँ।
मैं किसी की दृष्टि का क्या दूँ उलाहना,
स्वयं अपनी दृष्टि से घबरा रहा हूँ।
आज तो अपने विहंसते लोचनों से-
अश्रु-मुक्ता छलछलाओ तुम, चुनूँ मैं।
गीत मेरे गुनगुनाओ तुम, सुनूँ मैं।
दूर आशा से रहा सहवास मेरा,
इसलिए भयभीत है विश्वास मेरा।
सुख भरे सौभाग्य का स्वामी नहीं हूँ,
दुख भरा दुर्भाग्य अब तक दास मेरा।
ओ निठुरता की मृदुल प्रतिमा बताओ
ध्यान मैं कब तक तुम्हारे सिर धुनूँ मैं।
गीत मेरे गुनगुनाओ तुम, सुनूँ मैं।
मैं मधुर मन की हँसी पहचानता हूँ,
और उसकी बेबसी पहचानता हूँ।
तुम लिए फिरते गगन की मैनका को,
मैं धरणि की उर्वशी पहचानता हूँ।
पर, तुम्हारे रूप के भ्रम से भ्रमित हो
पाठ जो भुला, पढ़ाओ तुम, गुनूँ मैं
गीत मेरे गुनगुनाओ तुम, सुनूँ मैं।