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गीत — यह चन्दन-सा चान्द महकता, यह चान्दी-सी रात / जगदीश गुप्त

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यह चन्दन-सा चान्द महकता, यह चान्दी-सी रात ।
क्यों नयनों से रूप कह रहा — सुनो हमारी बात ।

झुकते पलक कि दूर क्षितिज तक छा जाता तम-तोम ।
खुलते नयन कि फिर आभा से लहरा उठता व्योम ।
अधरों पर मुस्कान कि पर खोले हंसों की पाँत ।

         क्यों नयनों से रूप कह रहा — सुनो हमारी बात ।

हिलती अलक की कँप उठती तम के पंथी की राह ।
वेणी खुली कि शेफ़ाली की नत डाली की छाँह ।
साँसे जाती भीग कि लातीं पुरवाई बरसात ।

         यह चन्दन-सा चान्द महकता, यह चान्दी-सी रात ।

देह लहराती या कि लहर को देता पवन झकोर ।
अविरल बोल कि जल में वर्षा की बून्दों का शोर ।
शरमीले से गात कि जैसे छुईमुई के पात ।

                                                     सुनो हमारी बात ।
                                                   यह चान्दी-सी रात ।