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गीत 10 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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ब्रह्म के जानै, सब कुछ जानै।
वेद-पुराण-शास्त्र के पढुआ, जग के जानै, कुछ नै जानै।

ममता आसक्ति अरु चाहत
हय जग से उलझावै,
सकल कर्म के विषयामुख करि
माया में लिपटावै
संत मान-अपमान से उठि कै, घुमि-घुमि सब दिश ब्रह्म बखानै
ब्रह्म के जानै, सब कुछ जानै।

जग छिक कूप तलाब
ब्रह्म के क्षीर समुन्दर जानै,
ब्रह्म के ज्ञानी हय जग से नै
आन प्रयोजन जानै
भ्रमित लोग भौति सुख के ही सब विधि नैसर्गिक सुख मानै
ब्रह्म के जानै, सब कुछ जानै।

ब्रह्म तत्व के ज्ञान
वेद के जानोॅ शुद्ध प्रयोजन
अर्जुन, हय संसार के जानोॅ
माया के संयोजन
सत्-रज-तम हय त्रिगुणी माया, जेकरा ज्ञानी जन पहचानै
ब्रह्म के जानै, सब कुछ जानै, जग के जानै कुछ नै जानै।