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गीत 10 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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एकि भाव से सांख्य योगिजन, शान्त ब्रह्म के पावै छै
से योगी अन्तःसुख वाला, परम सुखी कहलावै छै।
नित योगी अन्तः सुख वाला
आतमा में ही रमण करै
अन्तः ज्ञानी परमेश्वर के
अन्तः में ही भजन करै,
परम सच्चिदानन्द पुरुष के, से सहजें अपनावै छै
एकि भाव से सांख्य योगिजन, शान्त ब्रह्म के पावै छै।
जिनकर संशय-पाप नसावै
जे समदर्शी भाव धरै,
जे जन जीत रखै निश्छल मन
चित ईश्वर में धीर धरै
वहै ब्रह्मवेता कहलावै, शान्ति भाव अपनावै छै
एकि भाव से सांख्य योगिजन, शान्त ब्रह्म के पावै छै।
काम-क्रोध के वश में करि कै
जे चितपर जय पावै छै,
से पावै परमेश्वर के जे
ज्ञान व्रत अपनावै छै
ज्ञानी पावै शान्त ब्रह्म के, जे परिपूर्ण कहावै छै
एकि भाव से सांख्य योगिजन, शान्त ब्रह्म के पावै छै।