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गीत 12 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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ई सब तामस गुण छिक जानोॅ
जहाँ न मन इन्द्रिय बस में छै, तामस गुण पहचानोॅ।

जहाँ न शिक्षा के दरेस छै, व्यापल जहाँ अशिक्षा
जेकरा पास घमंड पलै, लै धूर्त कर्म के दीक्षा
दोसर के जीविका उजारै, ओकरा दुर्जन मानोॅ
ई सब तामस गुण छिक जानोॅ।

जेकर स्वभाव कठोर, विनय के भाव न कखनोॅ आनै
दाव-पेंच-तिकड़म जानी केॅ, खुद के ज्ञानी मानै
तिकड़म में जे तेज, धर्म में परम आलसी मानोॅ
ई सब तामस गुण छिक जानोॅ।

भाँति-भाँति के ओढ़ै चिन्ता, खुद चिन्ता उपजावै
आजुक-काम रखै कल पर, परसों तक नै करि पावै
कल-परसों करि बरसों काटै, निपट निकम्मा मानोॅ
ई सब तामस गुण छिक जानोॅ।

तामस करै अकारज अरु फल सहज अधोगति पावै
काल-कर्म अरु दैव के ऊपर झुट्ठा दोष लगावै
ऐसन प्राणी में नै कोनो शुभ लक्षण तोॅ मानोॅ
ई सब तामस गुण छिक जानोॅ।