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गीत 12 / आठवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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तन तजि चन्द्र ज्योति जे पावै
तौने पावै स्वर्गलोक, पुनि लौट धरा पर आवै।

सूर्य दक्षिणायण में वासै, कृष्ण पक्ष जब आवै
रात पहर तन त्यागै योगी, स्वर्गलोक में आवै
रखै सकाम भक्ति जब योगी देवलोग घुरियावै
तन तजि चन्द्र ज्योति जे पावै।

जे पावै छै स्वर्ग, स्वर्ग सुख भोगि केॅ जब बहरावै
पहिने आवै चन्द्रलोक में, फिर अकाश में आवै
तब आवै ऊ वायुलोक, फिर धूम्रलोक में आवै
तन तजि चन्द्र ज्योति जे पावै।

धूम्रलोक से बादल में ऊ मेघ के संगत पावै
जल बनि बरसै धरती पर, ऊ अन में आवि समावै
अन के अन्दर वहै जीव तब बीज तत्त्व कहलावै
तन तजि चन्द्र ज्योति जे पावै।

अन बनि करै प्रवेश उदर में पुरुष बीज गति पावै
तब नारी-योनी में आवी, पुनः देह के पावै
पूर्वजन्म के संस्कारवश, पुनः कर्म अपनावै
तन तजि चन्द्र ज्योति जे पावै।