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गीत 12 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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मन चंचल दशहूँ दिस भागै
भ्रमण करै भौतिक जग में ही, ईश्वर से नै लागै।
योगी जतन करै मन के ऊ जग से प्रथम हटावै
बार-बार अभ्यास करी ईश्वर में लावि लगावै
बेर-बेर मन भागि-भागि केॅ जग से ही अनुरागै
मन चंचल दशहूँ दिस भागै।
मन उच्छृंखल बेर-बेर संयम के रसरी तोरै
काम-क्रोध-मद-अहंकार के संगत कभी न छोड़ै
देखै जैसे लोभ-मोह के, सहजे पीछू लागै
मन चंचल दशहूँ दिस भागै।
कुशल सिपाही साधक मन के पकड़ि-पकड़ि केॅ लावै
परमेश्वर के चरण-कमल हाजत में लानि बिठावै
बाँधि-रखै संयम से, मन जब तक नै आप विरागै
मन चंचल दशहूँ दिस भागै।