भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 12 / सातवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे जन हमरा शरण में आवै
जरा-मरण के बन्धन टूटै, सहजे हमरा पावै।

से सहजे परब्रह्म के जानै और आप के जानै
से सम्पूर्ण करम करि केॅ खुद के कर्ता नै मानै
सकल कामना त्याग करै अरु नाम भजन नित गावै
जे जन हमरा शरण में आवै।

नित निष्काम पुरुष के मन में शुभ संकल्प बसै छै
जनम-मरण के बन्धन उनकर अपने-आप नसैछै
जे जानै अन्तःस्वरूप के, हमरा जानि ऊ पावै
जे जन हमरा शरण में आवै।

जे जानै जड़ रूप प्रकृति के, से अधिभूत कहावै
जे समझै हिरण्यगर्भ के, से अधिदैव बतावै
जे अव्यक्त रूप के जानै, से अधियज्ञ कहावै
जे जन हमरा शरण में आवै।