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गीत 15 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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सात्विक-बुद्धि ठीक-ठाक निर्णय करि पावै छै
कर्तव और अकर्तव के समझेॅ जे पावै छै।

सात्विक बुद्धि देश काल
आरो कर्ता के जानै,
उचित और अनुचित कारज के
बढ़ियाँ से पहचानै,
नीति वचन के ठीक-ठाक समझेॅ जे पारै छै।

दुख के आवै के आहट से
भय के जन्म हुऐ छै,
सुख के रोॅ पदचाप सुनी केॅ
प्राणी अभय रहै छै,
सात्विक दोनों के आवै के मर्म विचारै छै।

मृत्यु चक्र ही बन्धन छिक
एकरा सात्विक जन जानै,
हय बन्धन से मुक्ति पाना
मोक्ष छिकै हय मानै,
सात्विक जन मुक्ति के नित दिन पंथ बुहारै छै
कर्तव और अकर्तव के समझेॅ जे पारै छै।