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गीत 15 / ग्यारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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तों जगत पिता, तों जगत गुरु
तोरा सन तोहीं हे केशव, तोरे से हय सृष्टि शुरू।
पूज्यनीय अनुपम छवि अरु, अनुपम प्रभाव वाला तों
हम छी हे प्रभु एक अकिंचन सत्य सिद्धि वाला तों
प्रथम शरीर समर्पण करि केॅ, पुनः निवेदन करौं शुरू
तों जगत पिता, तों जगत गुरु।
तों स्तुति के जोग, हाथ जोड़ी हम स्तुति गावौं
प्रभो प्रसन्न हुओॅ हमरा पर, नित दिन चरण मनावौं
करब नित्य तोरोॅ अराधना कैने छी संकल्प सुरू
तों जगत पिता, तों जगत गुरु।
पिता पुत्र के, सखा सखा के सब अपराध सहै छै
पति-पत्नी में रहै शिकायत तैय्यो नेह रहै छै
वैसें हमरोॅ दोष विसारि करोॅ नेह के वृष्टि शुरू
तों जगत पिता, तों जगत गुरु।