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गीत 15 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जे घट-घट में हमरा जानै
उहेॅ एकीभाव पुरुष सच में हमरा पहचानै।

परमेश्वर मय सब जग जानै, भेद-भाव नै मानै
बादल-कुहरा-भाप-बरफ में जैसे जल के जानै
जे जन जानै परमेश्वर के, तन के बोध न जानै
जे घट-घट में हमरा जानै।

देखै कोनो जीव के, समझै ईश्वर के देखै छी
बोलै कोनो जीव से, समझै ईश्वर से बोलै छी
छुऐ कोनो जीव के, तब ईश्वर के परस ही मानै
जे घट-घट में हमरा जानै।

हे अर्जुन योगी सब जीवोॅ में हमरा जानै छै
सब प्राणी के दुख-सुख के, अप्पन दुख-सुख मानै छै
योगी में ऊ परम श्रेष्ठ छै, निज तन सन जग जानै
जे घट-घट में हमरा जानै।

जैसे बालक खेल-खेल में कंकड़ जमा करै छै
खेल काल में कंकड़ खातिर आपस में झगड़ै छै
खेल खतम होते कंकड़ के सचमुच कंकड़ मानै
जे घट-घट में हमरा जानै।

मान-प्रतिष्ठा-दौलत-किरति, ‘कंकड़-खेल-खिलौना’
योगी के नै सै लुभावै, जग के वस्तु लुभौना
परमेश्वर से पृथक कोय वस्तु के नै पहचानै
जे घट-घट में हमरा जानै।