भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 17 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साधक मन-इन्द्रिय-शरीर के, यग के जोग बनावै
और कर्म के बन्धन सहजे काटि मुक्ति के पावै।

कर्म तत्त्व के ज्ञान
कर्म बन्धन के सहजें नासै
और कर्म के बन्धन खुलतें
सब-टा गाँठ विनासै
ज्ञान यग तब द्रव्य यग से सौ गुण श्रेष्ठ कहावै
साधक मन-इन्द्रिय-शरीर के, यग के जोग बनावै।

ज्ञान यग में अक्षत-चन्दन
घृत-मिष्टान्न निरर्थक
धूप-दीप-कर्पूर-दही-तिल
सब सामान निरर्थक
सुधि साधक गण द्रव्य यग के दैव यग बतलावै
साधक मन-इन्द्रिय-शरीर के, यग के जोग बनावै।

जे संयम-अध्ययन-चिन्तनरत
रहि कै तत्त्व विचारै
जे विवेक-विज्ञान विचारै
ज्ञान-व्रत्य के धारै
विज्ञ तत्त्वदर्शी-ज्ञानी शुभ ज्ञान यग समझावै
साधक मन-इन्द्रिय-शरीर के, यग के जोग बनावै।