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गीत 18 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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पार्थ, तत्त्वदर्शी के जानोॅ
परम ज्ञान जानौ उनका से परम तत्त्व पहचानोॅ।

उनका दण्ड-प्रणाम करोॅ उनकर सेवा स्वीकारोॅ
कपटपूर्ण व्यवहार छोड़ि के सरल रूप गुण धारोॅ
परम ज्ञान मिलतोॅ उनके से, हे अर्जुन सच मानोॅ
पार्थ, तत्त्वदर्शी के जानोॅ।

सिद्ध संत ज्ञानी महात्मा परम तत्त्व बतलैतोॅ
हम के छी? माया की छै? ईश्वर के रूप बतैतोॅ
बन्धन की छिक? मुक्ति की छिक? बोध हृदय में आनोॅ
पार्थ, तत्त्वदर्शी के जानोॅ।

अगर परीक्षा बुद्धि तत्त्वदर्शी सँग व्यक्ति धरै छै
आतम समर्पण तत्त्वदर्शी सँग जे नै व्यक्ति करै छै
से नै जानै परम तत्त्व के, परम सत्य है मानोॅ
पार्थ, तत्त्वदर्शी के जानोॅ।

बछड़ा के देखी कै गौ में वात्सल्य जागै छै
वैसें ज्ञानीजन में भाव सहज उमरै लागै छै
तों जिज्ञासु भक्त छिकै, संकल्प अटल-दृढ़ ठानोॅ
पार्थ, तत्त्वदर्शी के जानोॅ।