भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 18 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्री भगवान उवाच-

श्री भगवान कृष्ण समझैलन
उनकर कभी न नाश हुऐ छै, जोग जतन जे कैलन।

जे अपनोॅ उद्धार के खातिर, ध्यान-योग साधै छै
जे जबरन मन के खींची केॅ संयम में बाँधै छै
जों कुयोग बस भठै अंत में, यति न अधोगति पैलन
श्री भगवान कृष्ण समझैलन।

योग भ्रष्ट साधक के करलोॅ पुण्य न कभी नसावै
अपनोॅ करल कर्म के फल से, श्रेष्ठ लोक के पावै
श्रेष्ठ लोक के भोगि संयमी, उत्तम कुल फिर पैलन
श्री भगवान कृष्ण समझैलन।

अरु वैराग्यवान साधक योगी के कुल में आवै
पुनः लगै परमारथ में, अरु जीवन सफल बनावै
अरु कुल के अनुरूप रही कै, पुनः योग के पैलन
श्री भगवान कृष्ण समझैलन।