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गीत 20 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जन्म-जन्म के संस्कार शुभ जैसे फलित हुऐ छै
तब पावै छै जीव परम गति सब शुभ घटित हुऐ छै।

पूर्वजन्म के संस्कार जब
सहज योग से बाँधै,
नित अभ्यासी अपर जन्म में
और अधिक फल साधै,
झड़ै पाप धूल-कण जैसें, साधक चकित हुऐ छै।

योगी श्रेष्ठ सदा तपसी से
और शास्त्रज्ञाता से,
यग दान तीरथ पूजा से
और संत सेवा से,
योग साधना नित अभ्यासी जन में उदित हुऐ छै।

जे समत्व योग के धारै
से कहलावै योगी,
सब योगी में हमर प्रिय छिक
श्रद्धावान संयोगी,
अंतरमन से भजै निरन्तर, जप संकलित हुऐ छै।

सब साधन के एक रूप छिक
जौने जोग कहावै,
श्रद्धा रखै ईश्वर सत्ता में
श्रद्धावन्त कहलावै,
श्रद्धावान योगी में ईश्वर के गुण लखित हुऐ छै।

मातृ परायण शिशु से माता
जैसे प्रेम रखै छै,
रखै हृदय से सदा लगैने
सुख के थपकी दै छै,
माता और शिशु सन दोनों आनन्दित हुऐ छै
जन्म-जन्म के संस्कार शुभ जैसे फलित हुऐ छै।