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गीत 20 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जैसे नदि-नद सब चलि-चलि के खुद सागर तक आवै छै
वैसें स्थितप्रज्ञ प्राणी में सब टा भोग समावै छै।

जैसें सागर पाय अकूल जल
उपलावै नै थीर रहै
तैसें स्थितप्रज्ञ प्राणी भी
सागर सन गंभीर रहै
तजै न दोनों निज मर्यादा वहि सें धीर कहावै छै।

हर्ष-शोक नै राग-द्वेष
नै कौनों और तरंग उठै
लोभ-मोह नै काम-क्रोध
नै मन में कभी मलंग उठै
मन सागर सन धीर रहै से परम शान्ति के पावै छै।

जे सम्पूर्ण कामना त्यागै
ममता सहज दुरावै छै
अहंकार के करै त्याग अरु
इच्छा-चाह नसावै छै
वहै शान्ति के मूर्त रूप छिक, परम तत्व ऊ पावै छै।
स्थितप्रज्ञ प्राणी में आवी सब टा भोग समावै छै।