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गीत 22 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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श्रद्धाहीन अविवेकी मानव परमारथ नै जानै
हरदम संशय युक्त रहै, नै सत-असत्य पहचानै।
शंकालु जन वेद वचन के
भी नै सच पतियावै
नासै जे ई लोक अपन
आरो परलोक नसावै
परमारथ प्रत्यक्ष परम सुख के सुख नै ऊ मानै
श्रद्धाहीन अविवेकी मानव परमारथ नै जानै।
शंकालु के वेरथ जीवन
परम लाभ के त्यागै
मोती लागै कंकड़ सन
कंकड़ मोती सन लागै
ईश्वर के उपहास करै अरु अप्पन किरित बखानै
श्रद्धाहीन अविवेकी मानव परमारथ नै जानै।
जे अर्जुन जे संशय त्यागी
सब सद्कर्म करै छै
आरो ईश्वर के अर्पित
जे अपनौ कर्म करै छै
वहेॅ सुखी जे संशय त्यागै, कर्म-योग-विधि जानै
श्रद्धाहीन अविवेकी मानव परमारथ नै जानै।