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गीत 23 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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शूर-वीर क्षत्रिय कहलावै
सौरज-धीरज और चतुरता हय शृंगार सुहावै।
सत्य शील धारण करि राखै युद्ध कला के ज्ञानी
बल-विवेक-दृढ़ता जिनका में, परहितकारी दानी
स्वाभिमान राखै जे हरदम, अहंकार नै आवै
शूर-वीर क्षत्रिय कहलावै।
न्याय करै जे निर्विकार भेॅ, क्षमा-कृपा गुण धारै
तेज-प्रताप सकल दिश फैलै, समता भाव स्वीकारै
संकट में भी रहै थीर जे, इष्ट देव के ध्यावै
शूर-वीर क्षत्रिय कहलावै।
रण में मृत्यु देख परिजन के, जे न कभी अकुलावै
रण में वन में और भवन में निज दायित्व निभावै
वैर-प्रीत दोनों जे मर्यादा के संग निभावै
शूर-वीर क्षत्रिय कहलावै।