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गीत 24 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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वैश्य वहेॅ जे वनिज पसारै
जे समाज के खेती-गोपालन करि केॅ उपकारै।

भाँति-भाँति के वस्तु आनि केॅ जे जन के पहुँचावै
और, वस्तु विनिमय करि-करि केॅ उचित मूल्य जे पावै
अन-धन-दूध-दही-घृत-औषण सब के मूल्य विचारै
वैश्य वहेॅ जे वनिज पसारै।

जन के उपयोगिता विचारै, माँग-पूर्ति के ध्यावै
उचित मूल्य में उचित वस्तु के उचित जगह पहुँचावै
क्रेता में विश्वास रोपि केॅ उचित लाभ जे धारै
वैश्य वहेॅ जे वनिज पसारै।

लाभ अंश के उचित भाग जे धर्म काज में डालै
मूल धनोॅ के लाभ अंश से जे परिजन के पालै
क्रेता सँग जे मित्र भाव रखि सब के हेत विचारै
वैश्य वहेॅ जे वनिज पसारै।