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गीत 25 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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अर्जुन, वहेॅ शूद्र कहलावै
अन्तःकरण न बस में जिनकर, इन्द्रिय नाच नचावै।

सत् अरु धर्म के पालन लेली, जे नै कष्ट उठावै
क्षमा-दया के नाम न जानै, शास्त्र श्रवण नै भावै
लोक और परलोक के नासै, सँग-सँग आप नसावै
अर्जुन, वहेॅ शूद्र कहलावै।

सत्य-शील के नाम न जानै, बल्हौं शक्ति दिखावै
स्वाभिमान नै, अहंकारवश पर-पीड़ा उपजावै
स्वारथ के बस न्याय न जानै, अपन हेतु पतियावै
अर्जुन, वहेॅ शूद्र कहलावै।

गौ पर अत्याचार करै जे और अशुभ पशु पोसै
मद्-माहुर व्यापार करै, जीवन भर नै संतोसै
भक्ष-अभक्ष प्रसाद कहीं जे बिन विचार अपनावै
अर्जुन, वहेॅ शूद्र कहलावै।

सात्विक-राजस के सेवा से, तम गुण आप नसावै
सेवा धर्म सकारि शूद्र, द्विजत्व आप ही पावै
से न शूद्र जे सकल त्यागि, हमरोॅ शरणागत आवै
अर्जुन, वहेॅ शूद्र कहलावै।