भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 2 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल
हय तीनों गुण प्रकृति से उपजल, माया नाम उपाधल।

सतगुण-रजगुण और तमोगुण त्रिगुण नाम कहलावै
हय तीनों ममता-आसक्ति-अहंकार उपजावै
हे अर्जुन हय जग के प्राणी तीनों गुण से साधल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।

हे अर्जुन, सतगुण अति निर्मल अरु प्रकाशमय जानोॅ
हय सुख-ज्ञान-मान उपजावै, एकरे बन्धन मानोॅ
सब विधि दोष रहित हय सतगुण पावन निर्मल-निर्मल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।

सदा शान्ति उपजावै सतगुण, चंचल मन के रोकै
सहज विरक्ति-भाव जागै, चित परमेश्वर में रोपै
‘हम छी सुखी-संत-ज्ञानी छी’, अहं भाव चित जागल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।