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गीत 2 / चौदहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल
हय तीनों गुण प्रकृति से उपजल, माया नाम उपाधल।
सतगुण-रजगुण और तमोगुण त्रिगुण नाम कहलावै
हय तीनों ममता-आसक्ति-अहंकार उपजावै
हे अर्जुन हय जग के प्राणी तीनों गुण से साधल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।
हे अर्जुन, सतगुण अति निर्मल अरु प्रकाशमय जानोॅ
हय सुख-ज्ञान-मान उपजावै, एकरे बन्धन मानोॅ
सब विधि दोष रहित हय सतगुण पावन निर्मल-निर्मल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।
सदा शान्ति उपजावै सतगुण, चंचल मन के रोकै
सहज विरक्ति-भाव जागै, चित परमेश्वर में रोपै
‘हम छी सुखी-संत-ज्ञानी छी’, अहं भाव चित जागल
हय तन त्रिगुण डोर से बाँधल।