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गीत 32 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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हय शरीर एक यंत्र, एकर वाहक छिक अंतर्यामी।
उनके माया सकल पसारल ऊ जब जग के स्वामी।
जे सब के हिय में बसलॉे छै
अरु तन में चलवै छै,
जैसें कोनो चालक
कोनो वाहन के चलवै छै,
पूर्वार्जित ऊ संस्कार से अरजै यश-बदनामी
हय शरीर एक यंत्र, एकर वाहक छिक अंतर्यामी।
मानव छै परतंत्र
यंत्र के संचालक दोसर छै,
जिनकर हय सब जग अधीन
ऊ एक्के परमेश्वर छै,
उनके संचालन में मद्धिम, कोय भेल दु्रतगामी
हय शरीर एक यंत्र, एकर वाहक छिक अंतर्यामी।
हे अर्जुन तों ऊ अंतर्यामी के
शरण स्वीकारोॅ,
परम शान्ति के तों पावोॅ
अरु परम धाम के धारोॅ,
सब के प्रेरक सर्वाधार जे, जे सर्वान्तरयामी
जिनकर माया सकल पसारल, जे सब जग के स्वामी।