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गीत 37 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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दोष रहित जे श्रद्धावन्त गीता के श्रवण करै छै
से पापोॅ से मुक्त हुऐ छै, श्रेष्ठ लोक पावै छै।

वक्ता पर विश्वास रखी
जे श्रवण करै गीता के,
से अपनोॅ अन्दर के नासै
विविध रूप शंका के,
गीता सुनि केॅ नरक योनि से जीव सहजें उबरै छै
दोष रहित जे श्रद्धावन्त गीता के श्रवण करै छै।

हे अर्जुन, एकान्त भाव से
शास्त्र श्रवण तों कैवेॅ,
की तोहें अज्ञान जनित
मन के सब मोह नसैवेॅ?

अर्जुन उवाच-

कहलन अर्जुन, कृष्ण मोह अब मन में नै बुझवै छै
मन के संशय नष्ट भेल, चित बिल्कुल शान्त लगै छै।

जागल अन्तः ज्ञान आब
जे कहवेॅ से हम करवोॅ
तोरे निर्देशन में हम हय
महासमर अब लड़वोॅ,
सुनल कृष्ण से जे अर्जुन, से संजय श्रवण करै छै
धृतराष्ट्र से कृष्ण-पार्थ सम्वाद कही सुनवै छै।