गीत 3 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
जे ज्ञानी जन, मन इन्द्रिय के अपनोॅ बस में कैने छै
से विशुद्ध अन्तःवाला छै, परमेश्वर के पैने छै।
सांख्य योगि जन तत्त्व के जानै
देखै सुनै स्पर्श करै
भोजन-शयन-गमन-प्रश्वासन
चिन्तन-बात-विमर्श करै
अप्पन काज करै इन्द्रिय गण, कर्म न चित में धैने छै
जे ज्ञानी जन, मन इन्द्रिय के अपनोॅ बस में कैने छै।
जैसे स्वप्न शरीर में प्राणी
सकल काज सम्पन्न करै
जगल व्यक्ति नै स्वप्न के कर्ता
अपना के महसूस करै
स्वप्न कर्म के ज्ञानी जन नै कखनो कर्म बतैने छै
जे ज्ञानी जन, मन इन्द्रिय के अपनोॅ बस में कैने छै।
मायामय मन प्राण इन्द्रिय
माया में घुरियावै छै
सांख्य योगि जन एकरा से नै
राग न दोष निभावै छै
षड्विचार से जे नै कखनों चिन्ह-जान तक कैने छै
से विशुद्ध अन्तःवाला छै, परमेश्वर के पैने छै।