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गीत 4 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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शास्त्र विदित कर्मो के जे कर्तव्य विचारि करै छै
आसक्ति फल से तजि प्राणी, सात्विक त्याग करै छै।
अकुशल, कर्म से द्वेष न राखै
नरक न कभी डरावै,
कुशल, कर्म से मोह न राखै
स्वर्ग न कभी लुभावै,
शुद्ध-सत्वगुण वहै पुरुष जे संशय त्याग करै छै।
तनधारी के लेल
कर्म के पूर्ण त्याग नै सम्भव,
मनुष कर्मफल त्यागि सकै छै
जे सब लेॅ छै सम्भव,
बुद्धिमान सच्चा त्यागी नै फल के आश करै छै।
जे न कर्मफल त्याग करै
से कर्मो के फल पावै,
अच्छा करै त अच्छा पावै
बुरा करै पछतावै,
भोगै कर्मो के फल, चौरासी में ऊ बिचरै छै।
कर्मो के फल त्याग करै
से कर्म के फल नै पावै,
जैसे भुनल बीज, कभी नै
अंकुर के गति पावै,
शुभ अरु अशुभ कर्म सब नासै, बन्धन में न परै छै
आसक्ति फल के तजि प्राणी, सात्विक त्याग करै छै।