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गीत 4 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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जोगी कमलपात के जैसन।
जग में रहि भींगै न राग से, रहै जैस के तैसन।
कर्म करै ईश्वर के अर्पित, कर्ता बोध न लावै
करै न फल के चाह, जगत से आसक्ति न दिखावै
मन में हरष-विषाद न तनियो, धरै योग बल ऐसन
जोगी कमलपात के जैसन।
जे निष्ठा से शान्ति प्राप्त करि परमेश्वर के ध्यावै
नासै सकल ममत्व-बुद्धि, इन्द्रिय के बोध नसावै
बँधै सकामी पुरुष काम से, मुक्ति-मोक्ष फिर कैसन
जोगी कमलपात के जैसन।
अन्तःकरण करै बस में जे उत्तम चरित स्वीकारै
करै कर्म, बनि रहै अकर्ता, सांख्ययोग गुण धारै
बिनसल मन के भेद सकल सब की ऐसन, की वैसन
जोगी कमलपात के जैसन।