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गीत 4 / सातवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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हय परा-अपरा प्रकृति से, जगत के निर्माण जानोॅ
हम सृजक-पालक-संहारक छी जगत के सत्य मानोॅ।
चर-अचर जड़ और चेतन
जगत के कारण हम्हीं,
पृथक हमरा से न जग के
और कुछ कारण कहीं,
जग गुथल छैसूत्र में मणि के जकाँ हमरा से जानोॅ।
जल में रस हम
चन्द्रमा अरु सूर्य बीच प्रकाश हम,
हम शबद आकाश में
अरु वेद में ओंकार हम,
हे धनंजय, पुरुष में पुरुषत्व तों हमरा ही जानोॅ।
पृथ्वी में गंध हम छी
अग्नि में छी तेज हम,
तपस्वी में तप हम्हीं छी
जीव में छी प्राण हम,
और हमरा पूर्ण भूतौ के सनातन बीज जानोॅ
हम सृजक-पालक-संहारक छी जगत के सत्य मानोॅ।