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गीत 5 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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भोगी तुरत करम फल पावै
विविध देव-देवी के सुमरै, अरु सौभाग्य मनावै।

कुछ अन-धन, कुछ कंचन काया, पुत्र रतन धन माँगै
भू-मकान कुछ मान-बड़ाई, सब संसाधन माँगै
जे जन जिनका भजै प्रेम से, उनका-उनका पावै
भोगी तुरत करम फल पावै।

देव सकल फल के दाता, नै देव मोक्ष के दायक
सब के मन के देव पुरावै, जे-जे जन जे लायक
जन्म-मरण के बन्धन से नै देव मुक्ति दिलवाबै
भोगी तुरत करम फल पावै।

भोगी और सकामी जन के हमर भजन नै भावै
तुरत-तुरत फल के चाहत में हमरा लोग भुलावै
ढेर-चढ़ौआ गांठ बान्हि कै, नगद देव उपजावै
भोगी तुरत करम फल पावै।