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गीत 6 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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सृष्टि के कर्त्ता हम्हीं, हमरे अकर्ता जानि लेॅ
और वर्ण-समूह-कर्म-विभाग कर्ता मानि लेॅ।
कर्म-फल से हम बंधल नै
भोग कुछ फल के न भावै
जीव जे हमरा समझि लै
से न फल बन्धन में आवै
कर्म बन्धन में मुमुक्षु नै परै छै जानि लेॅ
सृष्टि के कर्त्ता हम्हीं, हमरे अकर्ता जानि लेॅ।
पूर्व कालोॅ में पूर्वज
कैने छेलै से नित करोॅ तों
कर्म फल नै, स्वर्ग नै
नै मोक्ष के इच्छा करोॅ तों
सिर्फ तों कर्ता बनोॅ, कल्याण यै में मानि लेॅ
सृष्टि के कर्त्ता हम्हीं, हमरे अकर्ता जानि लेॅ।
कर्म की? अकर्म की छै?
प्रश्न बड़ ओझराह समझोॅ
द्वंद्व में ज्ञानी फँसल तब
कौन पैतै थाह समझोॅ
अब कहब विस्तार से करतब-अकरतब जानि लेॅ
सृष्टि के कर्त्ता हम्हीं, हमरे अकर्ता जानि लेॅ।