भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 7 / ग्यारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
आदि-मध्य अरु अंत रहित तों
तों अनन्त सामर्थ्य युक्त छेॅ, तों अनन्त मुख-बाहु सहित तों।
चन्द्र-सूर्य दू नयन तोर छिक
अग्नि रूप तोरोॅ मुख प्रज्ज्वलित,
तोर तेज से जगत प्रकाशित
तों विर्यवान अनन्त शुभाषित,
स्वर्ग और धरती रॅ बीच के, तों अकाश छेॅ जगत विदित तों।
सकल दिशा तोरोॅ से पूरण
रूप अलौकिक अति परिपूरण,
देखि भयंकर रूप डरौना
व्यथित भेल लागै हय जीवन,
तोरे में सब देव समाहित, अरु सब गुण से परिपूरण तों।
हाथ जोरि सब मंत्र उचारै
शरणागत सब सहज स्वीकारै,
सिद्ध ऋषि कल्याण मनावै
उत्तम स्वर मंे स्तुति गावै,
देख रहल छी हे नारायण, सब देवोॅ में बस पूजित तों
आदि-मध्य अरु अंत रहित तों।