भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 8 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

योगी हमरोॅ ध्यान धरै छै
परम शान्ति के पावै, मन के बस में करल-करै छै।

भोजन-भट्ट न सधै योग में, अरु न सधै उपवासी
सधै न देर तलक सूतै जे, सूरज के उपहासी
सधै न जिनका निन्द न आवै, ध्यान काल झपकै छै
योगी हमरोॅ ध्यान धरै छै।

यथायोग्य जे सूतै-जागै, अरु निज कर्म करै छै
यथायोग्य आहार-विहार करी दुख नाश करै छै
खान-पान में संयत रहि केॅ साधक सिद्धि करै छै
योगी हमरोॅ ध्यान धरै छै।

करै भूलवश भी न कभी जे काज अमंगलकारी
जे समदर्शी भाव रखै, जे सब जन के हितकारी
करै देह निर्वहन कभी नै तन के सोंच करै छै
योगी हमरोॅ ध्यान धरै छै।