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गीत 8 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जय-पराजय और दुख-सुख, लाभ-हानी एक रंग।
कामना के तजि रहै छै आतम ज्ञानी एक रंग।

तों करोॅ संग्राम, पावोॅ जीत
अरु सुख राज के।
या कि पावोॅ वीरगति के सँग
सहज सुख स्वर्ग के।
राज या कि स्वर्ग समझै वीर प्राणी एक रंग,
जय-पराजय और दुख-सुख, लाभ-हानी एक रंग।

युद्ध दोनों विधि उचित छै
ज्ञान से अरु कर्म से
भेद बुद्धि ही खसावै
वीर के निज धर्म से।
कर्मयोगी और साधक लक्ष्य-ध्यानी एक रंग,
जय-पराजय और दुख-सुख, लाभ-हानी एक रंग।

कर्मयोगी कर्म से निज
लक्ष्य के पूरा करै
और फल के कामना से
बेखबर हरदम रहै।
पर सकामी वीर ज्ञानी अरु अग्यानी एक रंग,
जय-पराजय और दुख-सुख, लाभ-हानी एक रंग।