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गीत 9 / सोलहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जे किनको से द्वेष करै छै, से हमरो से द्वेष करै छै
हम सब के अन्दर वासै छी, अज्ञानी जन नै समझै छै।
अहंकार बल के घमंड
कामना रखै जे सुख के,
परनिन्दा अरु क्रोध परायण
जुगति जुटावै दुख के,
अपना के दाता कहि-कहि केॅ, नित हमरोॅ उपहास करै छै।
जे दोसर के दोष निहारै
गुण नै कभी विचारै,
देखि संत के नाम सिकोड़ै
अरु अपशब्द उचारै,
जब संकट में परै मूढ़जन, तखनी हमरा याद करै छै।
सज्जन द्रोही और कुकर्मी
क्रूर कर्म जे धारै,
से सब नर के बीच अधम-नर
अपनोॅ हित न विचारै,
बेर-बेर आसुरी प्रवृत्तिवश अधम जीव के देह धरै छै।
बिच्छू-सूअर-स्वान-काग अरु
साँप देह जे पावै,
मक्खी-मच्छर-कीड़ा-मकड़ा
विविध देह में आवै,
बाघ-सिंह-अजगर-सियार के योनी में हर बेर पड़ै छै
जे किनको से द्वेष करै छै, से हमरा से द्वेष करै छै।