भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुजरात - 2002 - (तीन) / कात्यायनी
Kavita Kosh से
भूतों के झुण्ड गुज़रते हैं
कुत्तों-भैसों पर हो सवार
जीवन जलता है कण्डों-सा
है गगन उगलता अन्धकार ।
यूँ हिन्दू राष्ट्र बनाने का
उन्माद जगाया जाता है
नरमेध यज्ञ में लाशों का
यूँ ढेर लगाया जाता है ।
यूँ संसद में आता बसन्त
यूँ सत्ता गाती है मल्हार
यूँ फासीवाद मचलता है
करता है जीवन पर प्रहार ।
इतिहास रचा यूँ जाता है
ज्यों हो हिटलर का अट्टाहास
यूँ धर्म चाकरी करता है
पूँजी करती वैभव-विलास ।
(रचनाकाल : अप्रैल 2002)