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गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे / 'आशुफ़्ता' चंगेज़ी
Kavita Kosh से
गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे
तमाम दरिया किसी रोज़ डूब जाएँगे
सफ़र तो पहले भी कितने किये मगर इस बार
ये लग रहा है के तुझ को भी भूल जाएँगे
अलाव ठंडे हैं लोगों ने जागना छोड़ा
कहानी साथ है लेकिन किसे सुनाएँगे
सुना है आगे कहीं सम्तें बाँटी जाती हैं
तुम अपनी राह चुनो साथ चल न पाएँगे
दुआएँ लोरियाँ माओं के पास छोड़ आए
बस एक नींद बची है ख़रीद लाएँगे
ज़रूर तुझ सा भी होगा कोई ज़माने में
कहाँ तलक तेरी यादों से जी लगाएँगे