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गुज़र है तुझ तरफ़ हर बुलहवस का / वली दक्कनी
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गुज़र है तुझ तरफ़ हर बुलहवस का
हुआ धावा मिठाई पर मगस का
अपस घर में रक़ीबां को न दे बार
चमन में काम क्या है ख़ार-ओ-ख़स का
निगह सूँ तेरी डरते हैं नज़र बाज़
सदा है ख़ौफ़ द़ज्दूँ को असस का
बजुज़ रंगीं अदा दूजे सूँ मत मिल
अगर मुश्ताक़ है तू रंग-ओ-रस का
'वली' को टुक दिखा सूरत अपस की
खड़ा है मुंतजिऱ तेरे दरस का