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गुड़ियाघर / सरस्वती कुमार दीपक
Kavita Kosh से
कितना सुंदर, कितना प्यारा,
गुड़याघर, यह गुड़ियाघर!
इसमें रहती गुड़िया रानी,
इसमें रहते गुड्डे राजा,
गुड़िया कहती नई कहानी,
गुड्डा रोज बजाता बाजा।
मस्ती की बस्ती में खोए
रहते बनकर बेखबर!
घर के ऊपर छत नहीं है
और नहीं घर में दीवारें,
हँसती गुड़िया, कभी न रोई-
गुड्डा कब लाया तलवारें?
गुड़ियाघर की अजब कहानी-
इनको नहीं किसी का डर!
इतने सारे खेल-खिलौने,
रहते कब से साथ हैं,
इनके हैं सब ठाठ सलोने-
कोई नहीं अनाथ हैं!
हाय-हाय खाने-पीने की-
यहाँ कौन करता आकर?
गुड़ियाघर वाले कहते हैं-
‘घर-घर में तुम खुशियाँ बाँटो’
जो पल-छिन हँसते रहते हैं-
साथ हँसो, सब बंधन काटो!
इस दुनिया को हमें बनाना-
गुड़ियाघर-सा बढ़िया घर।